शुक्रवार, 21 जून 2019

शीत युद्ध और संवाद

कई दशकों से सुबह की सैर के लिए लेक जाता हूँ। अभी पिछले कुछ महीनों से वहाँ एक बुजुर्ग दक्षिण भारतीय दंपत्ति सुबह इडली और ढोसा बेचने आने लगे हैं। कम दाम और बेहतरीन माल होने के कारण उनकी बिक्री बढ़ने लगी और अब तो रोज सुबह उनकी टेबल पर भीड़ जमा रहती है। एक सुबह मैं भी वहाँ उस भीड़ में शामिल हो गया। कुछ ही देर में आगे बढ़ते हुए मैं उसकी टेबल तक पहुँच गया। “मेरा ६ इडली कह कर मैं शांति से प्रतीक्षा करने लगा। तब तक मेरे बगल वाले सज्जन निकल गए और उनका स्थान लिया एक युवती ने मेरा १० इडली युवती ने कहा। लेकिन वह यहीं नहीं रुकी, बार बार मेरा १० दोहराने लगी। मुझे खीज होने लगी।  थोड़ी ही देर में मेरा १० और मेरा ६ की गोलियां चलने लगी। हम दोनों के बीच शीत युद्ध शुरू हो चुका था। मुझे यह भी अनुभव हुआ कि अगर विक्रेता ने उसे पहले दिया तो शायद मैं बर्दास्त नहीं कर पाऊँगा। मुझे कुछ करना चाहिए। संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से मैंने कहा यह अपनी भाषा में गिनती कर रहा है। तमिल है या तेलुगू’? कोई जवाब नहीं मिला। लेकिन गोलीबारी एक बार रुक गई। मैंने देखा कि विक्रेता बार बार अपना हाथ झाड़ रहा है। अब मैंने उससे कहा लगता है इडली बहुत गरम है?’ उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया हाँ। मैंने फिर कहा आहिस्ता आहिस्ता, अंगुलिया-हाथ बचा कर। उसके बाद मेरे कानों मे आवाज पड़ी पहले इनका ६ फिर मेरा १०। युद्ध समाप्त हो चुका था। यह किसी की जीत हार नहीं थी। यह युद्ध का संवाद में विलय था। हृदय परिवर्तन।

कुछ दिन बाद वही युवती लेक पर घूमते हुए सामने से आते दिखी। पास आने पर मैंने हाथ जोड़ कर नमस्ते की। वह ठीक मेरे सामने आ कर चुपचाप खड़ी हो गई और आँखों में आँख डाल कर मुझे घूरने लगी। आज के माहौल और समय को देख मैं थोड़ा घबड़ाया लेकिन फिर सधे शब्दों में कहा नमस्कार आपको नहीं आपके भीतर छुपे गुण को, समझ को। अब वह भी मुस्कुराई हाथ जोड़े और हम अपने अपने रास्तों पर आगे बढ़ गए। पापी को नहीं पाप को मारो का मर्म समझ आया। गुणग्राही बनो।

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