शुक्रवार, 28 जून 2019

संस्कृति एवं संस्कार


“और संस्कार”?
“क्या होता है ये, आपका संस्कार? किसे कहते हैं संस्कार”?
“वह ज्ञान जिसे हम पूर्वजों से, परिवर से, समाज से, आड़ोस-पड़ोस से, उनकी बातों से, उनके तौर तरीकों से सीखते हैं”?
“बस रहने दीजिये आपका वो परिवार, समाज, पड़ोस। परिवार वाले हमारे लिए खड्डा खोदने में कोई कसर नहीं छोड़ते, समाज पूरी तरह दक़ियानूसी और रूढ़िग्रस्त है, पड़ोस झाँकने भी नहीं आता। यही है न आपके संस्कार की पाठशाला”?
“मेरी सुनो तो कहूँ”।
“हाँ हाँ, कहिए न, क्या कहना है आपको”?

“मैं इतना कुछ नहीं जानता हूँ। लेकिन हाँ मेरा बेटा विदेश में रहता है। कुछ समय पहले उसने भारत में भारतीय पद्धति से विवाह किया। विवाह के बाद दोनों, बेटा और बहू, विदेश चले गए। लेकिन बहू को उस देश के नियमों के तहत कुछ महीने बाद ही कुछ समय के लिए वापस आना पड़ा। आवश्यक कार्यवाही पूरी होने पर वह वापस चली गई। जाने के पहले सासू माँ के साथ कपड़े खरीदने बाजार गई। विदेशी परिधान के साथ-साथ भारतीय पोशाक भी खरीद रही थी। सास को आश्चर्य हुआ, “क्या ये पोशाकें वहाँ चलती हैं”?
“नहीं, लेकिन जब आप और बाबा वहाँ आएंगे तो आपलोगों के सामने मैं विदेशी पोशाक पहन कर नहीं घूमूंगी”।
“.........”
“तो आपका मतलब यह कि भारतीय पोशाक पहनना ही संस्कार है”?

“कुछ समय पहले स्काइप पर उन्ही बेटे-बहू से कुछ बातें कर रहे थे। कुछ देर में बेटा उठ कर चला गया लेकिन बहू बात करती रही। थोड़ी देर बाद दिखाई पड़ा कि बेटा कहीं बाहर जाने के लिए तैयार हो कर आया। हमने पूछ कहीं बाहर जा रहा है?’ बहू ने बताया कि हमलोगों का मूवी जाने के कार्यक्रम था। हमने तुरंत कहा, था मतलब, कहा क्यों नहीं? जाओ तुम भी जल्दी से तैयार हो जाओ और बात समाप्त कर लाइन काट दी।
“आपसे अपनी बात कहने की हिम्मत न होना ही संस्कार है”?

 नहीं, इनमें से कोई भी संस्कार नहीं है। लेकिन इन घटनाओं में आपसी सम्बन्धों को जोड़ने वाला वह पतला सा धागा जो न दिखाई पड़ता है न दिखाया जा सकता है, वह भावना जो न बताई जा सकती है न समझाई जा सकती है, वह समझ जो उस धागे को देखने की शक्ति प्रदान करती है वही संस्कार है। यह समझ कि मैं सिर्फ मैं नहीं हूँ, बल्कि मैं से बहुत ज्यादा व्यापक एक परिवार हूँ, समाज हूँ, गाँव-शहर-देश-विश्व-ब्रह्मांड और इन सबसे ऊपर मानव हूँ। यह दृष्टि जो बिना पढ़े, बताए, समझाये मिलती है, उसे संस्कार कहते हैं। संस्कार हमें केवल अपने अधिकारों से नहीं बल्कि अपने उत्तरदायित्वों से रूबरू करवाता है। संस्कार और संस्कृति ज़िम्मेदारी संभालने के लिए है, अधिकार प्राप्त करने के लिए नहीं’”हर समय बदलते रहने में न बदलने वाली चीज संस्कृति है। उसे देखने वाली दृष्टि संस्कार है   

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