ऑस्ट्रेलिया
– शहर की १० खास बातें और आग का कहर
जब कहीं भी
घूमने जाते हैं तब उस स्थान को हम एक अलग अंदाज से, एक अलग नजर
से देखते हैं। लेकिन जब वहाँ लंबे समय के लिए रहना हो तब दैनिक जीवन की अनेक बातों
पर नजर पड़ती है। ऐसी ही दस बातें जिनपर नजर पड़ी जब ऑस्ट्रेलिया में लंबा प्रवास
करना पड़ा:
१। किसी भी
इमारत में, जमीन के अंदर या छत पर, पानी जमा करने की व्यवस्था
(स्टोरेज टैंक) नहीं है। निगम द्वारा वितरित पानी में हर समय इतना दबाव बना रहता
है कि नलों में पानी उपलब्ध रहता है। बहुमंजली इमारतों या कई इमारतों के समूह
(कॉम्प्लेक्स) में पानी का दबाव बनाए रखने के लिए व्यवस्था अलग से है। निगम द्वारा
वितरत पानी पीने योग्य है और बिना किसी घरेलू फ़िल्टर के इसका प्रयोग बिना हिचक के
पीने एवं रसोई में किया जाता है।
२। हर जगह रसोई घरों में गैस का वितरण पाइप से है।
सिलिन्डर कहीं नहीं हैं।
३। बिजली की
दरें भी दिन के अलग अलग समय पर अलग-अलग हैं। बिजली सप्लाई करने वाली संस्था, उपभोक्ता का स्थान और समय के अनुसार प्राय: २४ घंटे तीन समयों में विभाजित
हैं – पीक समय, शोल्डर समय और सामान्य समय। बिजली का बिल कम
रखने के लिए इसका ध्यान रखना पड़ता है। लोग स्वचालित उपकरणों को इन दरों के अनुसार
चलाते हैं।
४। बिजली
के लिए अगर सौर पैनेल लगाया है तब यह जरूरी नहीं कि बैटरी भी लगाएँ। अपने पैनल से
उत्पन्न पूरी बिजली का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। लेकिन ऐसा कर सकते हैं कि
अप्रयुक्त बिजली को ग्रिड में भेज दें और उसी अनुपात में बिजली का बिल कम आए। है न
मजेदार बात। प्रयोग करो या बिक्री करो।
५। एक
विशेष बात, यहाँ शाम को सब शॉपिंग मौल बंद हो जाते हैं – ५.३० से ६.३० के मध्य –
वृहस्पतिवार को छोड़ कर। मैं एक बार फंस गया था, घूम घूम कर
खोज कर निकलने में ३०-४० मिनट का समय लग गए। सब दरवाजे बंद हो गए थे।
६। मैंने
किसी भी घर में पानी गरम करने का गीजर नहीं देखा। लेकिन हर जगह नलों में गरम पानी
की व्यवस्था है। गैस से पानी हाथों हाथ गरम होता है। चाहें तो सब नल खोल लीजिये सब
में अच्छा गरम पानी मिल जाएग। हमारे यहाँ ८ गरम पानी के नल हैं। कभी भी, किसी भी प्रकार की परेशानी या रुकावट नहीं आई।
७। सब घर
एक प्रकार से ‘सील’ हैं। अत: बाहर और अंदर के तापमान में फर्क होता
है। गर्मी में ज्यादा गरम और सर्दी में ज्यादा ठंडा नहीं होता। घर में धूल नहीं
होती।
८। अगर
बहुमंजली इमारत में न रहकर अपने बंगले में रहते हैं और उसके सामने बगीचा है तो उसे
सही रूप में हरा बनाए रखने का उत्तरदायित्व भी आपका ही है। भले ही घर के पीछे के
बगीजे को कबाड़खाना बनालें। सामने बगीचा
बनाना है या नहीं यह भी नगर निगम ही बताएगा, आप की मर्जी से
नहीं होगा।
९। कहीं भी जाना हो तो गूगल मैप में खोजिए। कहाँ है, कितनी दूर है, कितना समय लगेगा, सब पल भर में फोन पर आपके सामने होगा। गाड़ी से जाने का रास्ता और अगर सरकारी
परिवहन से जाना चाहते हैं तो उसके विकल्प – कहाँ से कैसे जाना होगा, कितना पैदल चलना होगा, कितने बजे पहुचेंगे आदि पूरी जानकारी कुछ क्षणों में ही अपने फोन पर आ
जाएगी। बस हो या ट्रेन या फेरी, सबकी समय सारिणी है और
साधारणतया सब समय से चलती हैं।
१०। सब
सरकारी सूचनाएँ टेलीफ़ोन पर ही मिलती है। टेलीफोन यहाँ विकल्प नहीं, रोज़मर्रा का एक आवश्यक उपकरण है। सब कार्य टेलीफ़ोन से ही कर सकते हैं।
कहीं आने जाने की जरूरत नहीं है।
ऑस्ट्रेलिया की आग
ऑस्ट्रेलिया
के एक बहुत बड़े भाग में विशेष कर न्यू साउथ वेल्स और दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के अनेक
जगहों पर भीषण आग लगी हुई है। अथक और लगातार प्रयासों के बावजूद, सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, अनेक जगहों पर आग काबू
के बाहर है। कम से कम १०० मकान के जलने और २ लोगों के मारे जाने की खबर है। गर्मी
का पूरा मौसम अभी बाकी है। दूर बैठे सब सुहाना लगता है। लेकिन यह आग एक ऐसी
त्रासदी है जिसे हम भारतवासी नहीं समझ पाते। यहाँ के शुष्क जलवायु की बड़ी प्रशंसा
करते हैं – पसीना नहीं आता, थकावट नहीं होती आदि आदि। लेकिन
यही जलवायु इस आग का कारण है। वातावरण में नमी न होने के कारण वनस्पति, घास, झाड़ियाँ एकदम सूख जाती हैं। गर्मी के बढ़ जाने
से इनमें आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। यह आग आवश्यक नहीं कि आदमी की गलती से ही
लगे। टहनी टूट कर गिरी, घर्षण हुआ,
चिंगारी निकली और आग लगी। पानी ने लेंस का काम किया, सूर्य
की किरणें जमा हो कर घास या झड़ी पर पड़ी और आग लगी। क्यों,
ऐसे सूखेपन से तो आद्रता ही भली। परेशानी तो होती है लेकिन जान-माल की हानि तो
नहीं। दूर के ढोल सुहावने।
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