भाषा की मान्यता के लिए धरना
भाषा
की मान्यता की राजनीति नई नहीं है। स्वतन्त्रता के बाद देश की 14 भाषाओं को संविधान की 8वीं सूची में शामिल कर उन्हे
मान्यता प्रदान की गई। उसके बाद समय समय पर और भाषाओं को मान्यता मिलती रही, यानि संविधान की 8वीं सूची में शामिल होती रही। इस प्रकार इनकी संख्या बड़कर 22 हो गई। लेकिन राजस्थानी को मान्यता नहीं मिली। अत:
इसकी मान्यता के लिए विभिन्न रूपों में निरंतर संघर्ष चल रहे हैं। पर अभी तक सफलता
नहीं मिली है।
दुख की
बात यह है की भाषा को मान्यता देने के लिए किसी भी प्रकार का कोई मापदंड नहीं है।
यह निर्णय पूर्णतया सरकार के हाथ में है। इसी कारण भाषा की मान्यता वोटों की
राजनीति हो गई है। केंद्रीय सरकार की सबसे बड़ी साहित्यिक संस्था केंद्रीय साहित्य
अकादमी ने 24 भाषाओं को
मान्यता प्रदान की है। वहीं संविधान की 8वीं सूची में 22 भाषाएँ शामिल हैं।
23वीं भाषा
अंगेरजी है जिसे देश की संपर्क भाषा के रूप में मान्यता है और 24वीं भाषा
राजस्थानी है। दुर्भाग्य वश सरकार के पास इसका कोई जवाब भी नहीं है और न ही मान्यता प्रदान कर रही
है। यह राजस्थानियों की अवमानना है।
राजस्थानी
भाषा को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए किए जा रहे अनेक प्रयासों में यह भी
एक प्रयास है।
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