श्रीमतीमहादेवी वर्मा छायावाद युग की प्रतिनिधि कवियित्रि हैं। उनकी कविताओं को बहुत दुरूह
बताया जाता है। उनकी लिखी एक भावनात्मक सहज कविता की बानगी आपके लिए:
श्रीमती महादेवी वर्मा |
आ
गए तुम?
द्वार
खुला है, अंदर आओ.....
पर
तनिक ठहरो...
ड्योड़ी
पर पड़े पायदान पर,
अपना
अंह झाड़ आना...
मधुमालती
लिपटी है मुंडेर से,
अपनी
नाराजगी वहीं उड़ेल आना...
तुलसी
की क्यारी में,
मन
की चटकन चढ़ा आना...
अपनी
व्यस्तताएं,
बाहर
खूंटी पर ही टांग आना,
जूतों
संग,
हर
नकारात्मकता उतार आना...
बाहर
किलोलते बच्चों से,
थोड़ी
शरारत मांग लाना...
वो
गुलाब के गमले में, मुस्कान लगी है..
तोड़
कर पहन आना...
प्रेम
और विश्वास की मद्धम आंच पर,
चाय
चढ़ाई है, मैंने
घूंट
घूंट पीना,
सुनो,
इतना
मुश्किल नहीं है जीना ....
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