शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

ज्ञान, प्रेम और घृणा


आज का वर्ग बहुत ज्ञानी है। अत: किसी भी ज्ञान की बात पर उफ़्फ़’, फिर शुरू’, बस बहुत हो गया’, और ज्ञान नहीं ऐसे कुछ जुमले हैं जो तुरंत सुनने को मिलता है। इस वर्ग को और ज्ञान नहीं चाहिए। अगर उन्हे कभी कुछ चाहिए तो बाबा से पूछ लेंगे, अरे अपने वही गूगल बाबा से। लेकिन क्या कभी यह भी सोचा कि उस बाबा को ज्ञान देना भी पड़ता है? यही नहीं, उससे मिला ज्ञान क्या सही है? क्या इस, भले ही अधूरे ज्ञान पर ही सही, कभी विचार किया है? उस ज्ञान पर काम किया है? हमारे पास ज्ञान लेने का समय नहीं है लेकिन व्हाट्सप्प फॉरवर्ड करने के लिए, आस पास रेस्टुरेंट खोजने के लिए, मौल खोजने के लिए, कितने लाइक मिले और यह विश्लेषण करने के लिए कि किसका लाइक मिला और किसका नहीं मिला बहुत समय है। मैं इन्हे छोड़ने नहीं कहता। इन्हे कीजिये, लेकिन सही ज्ञान लेने, समझने और उस पर अमल करने की बात कर रहा हूँ। यही ज्ञान जिंदगी बदलेगी।
   
प्रेम और घृणा पर शोध करने वाले एक विद्वान ने पंद्रह विद्यार्थियों की कक्षा में कहा कि वे वहाँ मौजूद जिन विद्यार्थियों को बिलकुल नापसंद करते हों, उनके नाम एक चिट पर फ़ौरन लिख कर दें।  एक विद्यार्थी को  छोड़ कर, सबने चिट पर नाम लिख दिये। फकत उस एक विद्यार्थी ने किसी का भी नाम नहीं लिखा। कुछ ने कुछ नाम लिखे तो एक ने तो अधिकतम तेरह नाम लिख डाले। इस प्रयोग से जो तथ्य सामने आया, वह बहुत चौंकानेवाला था। जिन विद्यार्थियों ने अधिकतम लोगों को नापसंद किया, उनको स्वयं को भी अधिकतम लोगों ने नापसंद कर डाला। सबसे अद्भुत बात तो यह रही कि जिस युवक ने किसी को भी नापसंद नहीं किया, उसका नाम किसी ने भी अपनी चिट में नहीं लिखा। पसंद और नापसंद, प्रेम और घृणा परस्पर अवलंबित होती है। अच्छे बुरे भाव सापेक्षता का सिद्धांत होते हैं, जैसा हम दूसरों को देखते हैं, दूसरे भी हमें वैसा ही देखते हैं

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

मुश्किल नहीं है जीना


श्रीमतीमहादेवी वर्मा छायावाद युग की प्रतिनिधि कवियित्रि हैं। उनकी कविताओं को बहुत दुरूह बताया जाता है। उनकी लिखी एक भावनात्मक सहज कविता की बानगी आपके लिए:

श्रीमती महादेवी वर्मा


आ गए तुम?
द्वार खुला है, अंदर आओ.....
पर तनिक ठहरो...
ड्योड़ी पर पड़े पायदान पर,
अपना अंह झाड़ आना...
मधुमालती लिपटी है मुंडेर से,
अपनी नाराजगी वहीं उड़ेल आना...
तुलसी की क्यारी में,
मन की चटकन चढ़ा आना...
अपनी व्यस्तताएं,
बाहर खूंटी पर ही टांग आना,
जूतों संग,
हर नकारात्मकता उतार आना...
बाहर किलोलते बच्चों से,
थोड़ी शरारत मांग लाना...
वो गुलाब के गमले में, मुस्कान लगी है..
तोड़ कर पहन आना...
प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर,
चाय चढ़ाई है, मैंने
घूंट घूंट पीना,
सुनो,
इतना मुश्किल नहीं है जीना ....


शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

सूतांजली अगस्त २०१९

सूतांजली अगस्त२०१९ में ३ लेख एवं एक गांधी प्रश्नोत्तरी की रिपोर्ट है। अपने विचार एवं टिप्पणी हम तक पहुंचाएं तो हमें अच्छा लगेगा।

इस अंक के तीन  लेख हैं इस प्रकार हैं  -  
१. सर्व धर्म समभाव
हम, भारतवासी, इसकी चर्चा तो करते हैं लेकिन इस पर अमल नहीं करते। इसका जीता जागता उदाहरण मिला स्पेन में।

२. श्री राम की सेना
श्री राम की सेना में वानर थे, अनपढ़ और अशिक्षित तथा हथियार विहीन। गांधी को भी इसी निहत्थे समुदाय का भरपूर सहयोग मिला था। लेकिन दोनों का अंत विपरीत था।

३. गांधी का टाइम मानजमेंट
गांधी मुलाकतियों को भले ही कम समय दे पाते हों लेकिन सबों को समय देते थे और पूरी एकाग्रता से देते थे।

 कौन जनता गांधी कोकी जुलाई की रिपोर्ट
 पढ़ें http://sootanjali.blogspot.com पर

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

जैसे हैं वैसे दिखें

एक सीधी साधी आसानी सी जिंदगी को हमने कितना दुरूह, जटिल और तनाव पूर्ण बना लिया है। हम जैसे हैं वैसा दिखना नहीं चाहते और जैसा दिखना चाहते हैं वैसा हो नहीं पाते। वैसा बनने की  कोशिश में ज़िंदगी का कचरा कर लेते हैं। बात बस इतनी सी ही है। यह हम समझते भी हैं, जानते भी हैं, लेकिन मानते नहीं। एक बच्चा यह समझता नहीं है, जानता नहीं है लेकिन मानता यही है। इस कारण उसकी जिंदगी न दुरूह है, न जटिल है और न तनावपूर्ण। हमें देख, धीरे धीरे वह भी इन सबों में फंस जाता है। हम बच्चों को समझाने की कोशिश करते हैं जब कि हमें बच्चों से समझने की कोशिश करनी है।

एक आडंबर पूर्ण जीवन जीने के चक्कर में हम अ-सम्मान, पाप और तनाव बटोरते रहते हैं। इसके विपरीत हम जैसे हैं वैसा ही दिखने में, गौरव अनुभव करने से सम्मान, स्नेह और शांति बटोरते हैं।  जिंदगी सहज हो जाती है। अपने दोष को स्वीकार करने से हम दोष मुक्ति की तरफ अग्रसर होते हैं।  वहीं उसे नकारने से दोष के दलदल में धँसते जाते हैं।

भारत के प्रधान मंत्री रूस जाने की तैयारी कर रहे थे। उनके साथ उनकी पत्नी, ललिताजी को भी जाना था।  ललिताजी एक सीधी सादी भारतीय महिला थीं। प्रधान मंत्री की पत्नी के रूप में विदेश जाने से बहुत घबड़ा रही थीं। पता नही कौना क्या पूछ लेगा? मैं सही ढंग से जवाब दे पाऊँगी या नहीं? देश और प्रधानमंत्री के गौरव तथा सम्मान की रक्षा कर पाऊँगी या नहीं? विदेशी तौर तरीके न जानने के कारण उपहास का कारण बन जाऊँगी?” ललिता जी ने अपनी दुविधा अपने पति और देश के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को बताई तथा उन्हे साथ न ले जाने का अनुरोध किया।
 
लाल बहादुर एवं ललिता शास्त्री
शास्त्रीजी ने उन्हे समझाया, “तुम यह सोचकर चलो कि तुम प्रधानमंत्री की पत्नी नहीं, बल्कि भारत के एक नागरिक की पत्नी हो। यह सोच, तुम्हें एकदम सहज कर देगा। तुम्हें अपने को कुछ विशेष रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। तुम जैसी हो उसीमें गौरव महसूस करने की आवश्यकता है”। ललितजी ने उनकी बात को समझा और वैसा ही आचरण किया। वहाँ के लोगों से उन्होने सादगीपूर्ण भारतीय जीवन के विषय में बात की और अपने उत्तरों से सबको संतुष्ट कर दिया। जैसे हैं उसीमें गौरव अनुभव करने से कोई असुविधा नहीं होती। लोग उनके कायल भी होते हैं और वे सम्मान के हकदार भी होते हैं।   

शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

गांधी फिर बंगाल में

चौंक गए! मत चौंकिए। यह कहानी नहीं हकीकत है। अगर विश्वास नहीं तो पढ़िये ये खबर –

“कोलकाता (सन्मार्ग संवाददाता) : कोई दिखावा नहीं, सहज जीवन यापन करें। सदा जीवन उच्च विचार रखें। अगर कोई गलती हुई है तो उसे स्वीकार कर लोगों का सामना करें। जनता की अनदेखी करना नहीं चलेगा. यह सारी नसीहत तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने गुरुवार को तृणमूल भवन में आयोजित विधायकों की बैठक में दी”।


क्या ये गांधी के शब्द नहीं हैं? क्या ये गांधी के विचार नहीं हैं? यह वक्तव्य कोलकाता के हिन्दी दैनिक पत्र सन्मार्ग में शुक्रवार 12 जुलाई 2019 को प्रकाशित हुई। क्या यही गांधी द्वारा बताई गई हृदय परिवर्तन है। आप खुद निर्णय लें। आपकी जानकारी के लिए पूरी खबर यहाँ दी जा रही है। 




शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

हमारे चार धाम और उनके मंत्र


जब सनातन धर्म आडम्बर और कर्मकांड के दल दल में फंसा पाताल में धँसता जा रहा था उसी समय आचार्य शंकराचार्य का, सूर्य के सदृश्य, भारत के क्षितिज पर आगमन होता है। अपने ज्ञान और कौशल से वे सिर्फ सनातन धर्म की पुनर्स्थापना ही नहीं करते बल्कि आर्यावर्त को संगठित कर उसके संचालन की भी व्यवस्था करते हैं। देश के चारों कोनों में चार धाम की स्थापना करते हैं, चार देवी-देवता, चार वेद, चार महा मंत्र तथा चार आचार्यों को प्रतिष्ठित करते हैं और उनके भविष्य में सुचारु रूप से चलते रहने का भी सुप्रबंध करते हैं। 

आचार्य शंकर ने देश को संगठित करने के लिए देश के चारों कोनों में एक-एक मठ की स्थापना की। सबसे पहले उन्होने दक्षिण में तुंगभद्रा नदी के तट पर शृंगेरी मठ की स्थापना की। यहाँ के देवता आदिवाराह, देवी शारदाम्बा, वेद यजुर्वेद और महावाक्य अहं ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म हूँ, बृहदारण्यक उपनिषद १.४.१०, यजुर्वेद) है। सुरेशाचार्य को मठ का अध्यक्ष नियुक्त किया। इसके बाद उन्होने उत्तर दिशा में अलकनंदा नदी के तट पर बदरिकाश्रम (बद्रीनाथ) के पास ज्योतिर्मठ की स्थापना की जिसके देवता श्रीमन्नारायण तथा देवी श्रीपूर्णगिरि हैं। यहाँ के संप्रदाय का नाम आनंदवार, वेद अथर्ववेद तथा महावाक्य अयमात्मा ब्रह्म (आत्मा ब्रह्म है, मांडूक्य उपनिषद १.२ अथर्ववेद), है। मठ का अध्यक्ष तोटकाचार्य को बनाया। पश्चिम में उन्होने द्वारकापुरी में शारदा मठ की स्थापना की जहां के देवता सिद्धेश्वर, देवी भद्रकाली, वेद सामवेद और महावाक्य तत्वमसी (तू वही है, छांदोग्य उपनिषद, ६.८.७, साम वेद) है। इस मठ का अध्यक्ष हस्तमानवाचार्य को बनाया। उधर पूर्व दिशा में जगन्नाथपुरी के पास महानदी के तट पर गोवर्धन मठ की स्थापना की जहां के देवता जगन्नाथ, देवी विशाला, वेद ऋग्वेद और महावाक्य प्रज्ञान ब्रह्म (ज्ञान ब्रह्म है, ऐतरेय उपनिषद ३.३, ऋग वेद) है। यहाँ उन्होने हस्तामलकाचार्य को मठ का अध्यक्ष बनाया। इस प्रकार शंकराचार्य ने अपने सांगठिक कौशल से सम्पूर्ण भारत को धर्म एवं संस्कृति के अटूट बंधन में बांध कर विभिन्न मत-मतांतरों के माध्यम से सामंजस्य स्थापित किया और एक सूत्र में पिरोया।

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

सूतांजली जुलाई २०१९

सूतांजली जुलाई२०१९ में ३ लेख एवं एक गांधी प्रश्नोत्तरी की रिपोर्ट है। अपने विचार एवं टिप्पणी हम तक पहुंचाएं तो हमें अच्छा लगेगा।

इस अंक में तीन  लेख हैं इस प्रकार हैं  -  
१. गांधी प्रासंगिक हैं – इन एक्शन
गांधी की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठते हैं और इस पर अनेक तर्क वितर्क भी होते रहते हैं। लेकिन बंगाल के जूनियर डॉक्टरों ने अपनी करनी से बता दिया कि गांधी प्रासंगिक हैं।

२. क्या कोई मौका आखरी होता है
अगर आप प्रयास रत हैं तो कोई मौका आखरी नहीं होता अन्यथा हर मौका आखरी होता है।

३. पढे-लिखे व विशेषज्ञों को हमारे मुद्दे पता ही नहीं
यह आवश्यक है कि पढ़े लिखे लोग एवं विशेषज्ञ किताब, पुस्तकालय और लैबोरेटरी से बाहर निकाल कर  जमीन से जुड़ें।

 कौन जनता गांधी कोकी जून की रिपोर्ट

 पढ़ें http://sootanjali.blogspot.com पर भी