मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

साप्ताहिक ब्लॉगिंग


साप्ताहिक ब्लॉगिंग

आज 31 दिसंबर 2019। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार सन 2019 का अंतिम दिन। कल नव–वर्ष, 2020 का पदार्पण।  इस नव-वर्ष पर आप सबों को हार्दिक शुभ कामनाएँ। नूतन वर्ष आपके जीवन में सुख-शांति-वैभव एवं ऐश्वर्य लाये। इस ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरुवात की थी पॉप ग्रेगोरी XIII ने 1582 में। इसके पहले जूलियस सीज़र द्वारा प्रतिपादित जूलियन कैलेंडर की ही मान्यता थी।

खैर मेरा उद्देश्य इन कैलेंडरों के बारे में बताना नहीं है। वैसे तो ब्लॉगिंग कई वर्षों से निरंतर कर रहा हूँ। लेकिन मार्च 2018 में मैंने विधिवत हर सप्ताह www.maheshlodha.com पर एक पोस्ट डालने का निश्चय किया था और उसे निभा रहा हूँ। उसके पहले अगस्त 2017 से मासिक सूतांजली लिख रहा हूँ। इसे इसके ब्लॉग http://sootanjali.blogspot.com पर पोस्ट भी कर रहा हूँ। इसके साथ साथ इसकी प्रिंट कॉपी भी भेजी जा रही है तथा मेरे फ़ेस बूक और ब्लॉग पर इसका लिंक भी दिया जा रहा है।  अब इनमें कुछ बदलाव करने का मन बना लिया है।

मेरा घूमने और पढ़ने का शौक रहा है। उम्र के साथ पढ़ने का शौक बढ़ता गया और घूमने का शौक कम होता गया। प्रमुखत: मैं अपने ब्लॉग में दो विषयों पर लिखूंगा। पहला विषय होगा अपनी पढ़ी पुस्तक, लेख, पत्रिका और साहित्य। आधुनिकता ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया है। प्रकाशन अब पहले जैसा कष्ट साध्य भी नहीं रहा। वैश्वीकरण ने कला-संस्कृति-ज्ञान-लेखन को भी बाजार में खड़ा कर दिया है। बाजार में हर प्रकार का सृजन हो रहा है। जो कुछ नहीं जानते वे दूसरों के सृजन को अपने नाम से छपवा रहे हैं। महंगे होटलों में, उच्च सरकारी प्रशासकों और विधायकों द्वारा उनका विमोचन होता है, उत्कृष्ट कागजों पर महंगी छपाई होती है। असली साहित्य को प्रकाशक ही नहीं मिल पाते। सरस्वती कोने में बैठी बिसूरती रह जाती हैं और लक्ष्मी उनके रूप में अपना डंका चारों ओर बजा आती है। फलस्वरूप दोयम दर्जे का सृजन प्रचारित-प्रसारित हो जाता है। इस अवस्था में यह जानना, पहचानना और खोज कर निकालना कि क्या पढ़ें और क्या नहीं, एक दुष्कर कार्य हो जाता है।  इस लेखन का उद्देश्य केवल मुझे अच्छे लगे लेखन के बारे में बताना है।

दूसरा विषय है, अपनी यात्राओं के बारे में बताना या / और दिखाना। वहाँ जायें या न जायें या जहां बैठे हैं वहीं बैठे बैठे ही उन्हे देखें - यह आपकी मर्जी।

इनके कारण हो सकता है अब मैं हर सप्ताह पोस्ट न डाल सकूँ, लेकिन लिखता तो रहूँगा। एक बार फिर से नव-वर्ष पर शुभ कामनाएँ।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – शहर की १० खास बातें और आग का कहर

ऑस्ट्रेलिया – शहर की १० खास बातें और आग का कहर

जब कहीं भी घूमने जाते हैं तब उस स्थान को हम एक अलग अंदाज से, एक अलग नजर से देखते हैं। लेकिन जब वहाँ लंबे समय के लिए रहना हो तब दैनिक जीवन की अनेक बातों पर नजर पड़ती है। ऐसी ही दस बातें जिनपर नजर पड़ी जब ऑस्ट्रेलिया में लंबा प्रवास करना पड़ा:

१। किसी भी इमारत में, जमीन के अंदर या छत पर, पानी जमा करने की व्यवस्था (स्टोरेज टैंक) नहीं है। निगम द्वारा वितरित पानी में हर समय इतना दबाव बना रहता है कि नलों में पानी उपलब्ध रहता है। बहुमंजली इमारतों या कई इमारतों के समूह (कॉम्प्लेक्स) में पानी का दबाव बनाए रखने के लिए व्यवस्था अलग से है। निगम द्वारा वितरत पानी पीने योग्य है और बिना किसी घरेलू फ़िल्टर के इसका प्रयोग बिना हिचक के पीने एवं रसोई में किया जाता है। 

२।  हर जगह रसोई घरों में गैस का वितरण पाइप से है। सिलिन्डर कहीं नहीं हैं।

३। बिजली की दरें भी दिन के अलग अलग समय पर अलग-अलग हैं। बिजली सप्लाई करने वाली संस्था, उपभोक्ता का स्थान और समय के अनुसार प्राय: २४ घंटे तीन समयों में विभाजित हैं – पीक समय, शोल्डर समय और सामान्य समय। बिजली का बिल कम रखने के लिए इसका ध्यान रखना पड़ता है। लोग स्वचालित उपकरणों को इन दरों के अनुसार चलाते हैं।

४। बिजली के लिए अगर सौर पैनेल लगाया है तब यह जरूरी नहीं कि बैटरी भी लगाएँ। अपने पैनल से उत्पन्न पूरी बिजली का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। लेकिन ऐसा कर सकते हैं कि अप्रयुक्त बिजली को ग्रिड में भेज दें और उसी अनुपात में बिजली का बिल कम आए। है न मजेदार बात। प्रयोग करो या बिक्री करो।

५। एक विशेष बात, यहाँ शाम को सब शॉपिंग मौल बंद हो जाते हैं – ५.३० से ६.३० के मध्य – वृहस्पतिवार को छोड़ कर। मैं एक बार फंस गया था, घूम घूम कर खोज कर निकलने में ३०-४० मिनट का समय लग गए। सब दरवाजे बंद हो गए थे।

६। मैंने किसी भी घर में पानी गरम करने का गीजर नहीं देखा। लेकिन हर जगह नलों में गरम पानी की व्यवस्था है। गैस से पानी हाथों हाथ गरम होता है। चाहें तो सब नल खोल लीजिये सब में अच्छा गरम पानी मिल जाएग। हमारे यहाँ ८ गरम पानी के नल हैं। कभी भी, किसी भी प्रकार की परेशानी या रुकावट नहीं आई।

७। सब घर एक प्रकार से सील हैं। अत: बाहर और अंदर के तापमान में फर्क होता है। गर्मी में ज्यादा गरम और सर्दी में ज्यादा ठंडा नहीं होता। घर में धूल नहीं होती।

८। अगर बहुमंजली इमारत में न रहकर अपने बंगले में रहते हैं और उसके सामने बगीचा है तो उसे सही रूप में हरा बनाए रखने का उत्तरदायित्व भी आपका ही है। भले ही घर के पीछे के बगीजे को  कबाड़खाना बनालें। सामने बगीचा बनाना है या नहीं यह भी नगर निगम ही बताएगा, आप की मर्जी से नहीं होगा।

९।  कहीं भी जाना हो तो गूगल मैप में खोजिए। कहाँ है, कितनी दूर है, कितना समय लगेगा, सब पल भर में फोन पर आपके सामने होगा। गाड़ी से जाने का रास्ता और अगर सरकारी परिवहन से जाना चाहते हैं तो उसके विकल्प – कहाँ से कैसे जाना होगा, कितना  पैदल चलना होगा, कितने बजे पहुचेंगे आदि पूरी जानकारी कुछ क्षणों में ही अपने फोन पर आ जाएगी। बस हो या ट्रेन या फेरी, सबकी समय सारिणी है और साधारणतया सब समय से चलती हैं।

१०। सब सरकारी सूचनाएँ टेलीफ़ोन पर ही मिलती है। टेलीफोन यहाँ विकल्प नहीं, रोज़मर्रा का एक आवश्यक उपकरण है। सब कार्य टेलीफ़ोन से ही कर सकते हैं। कहीं आने जाने की जरूरत नहीं है।

ऑस्ट्रेलिया की आग


ऑस्ट्रेलिया के एक बहुत बड़े भाग में विशेष कर न्यू साउथ वेल्स और दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के अनेक जगहों पर भीषण आग लगी हुई है। अथक और लगातार प्रयासों के बावजूद, सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, अनेक जगहों पर आग काबू के बाहर है। कम से कम १०० मकान के जलने और २ लोगों के मारे जाने की खबर है। गर्मी का पूरा मौसम अभी बाकी है। दूर बैठे सब सुहाना लगता है। लेकिन यह आग एक ऐसी त्रासदी है जिसे हम भारतवासी नहीं समझ पाते। यहाँ के शुष्क जलवायु की बड़ी प्रशंसा करते हैं – पसीना नहीं आता, थकावट नहीं होती आदि आदि। लेकिन यही जलवायु इस आग का कारण है। वातावरण में नमी न होने के कारण वनस्पति, घास, झाड़ियाँ एकदम सूख जाती हैं। गर्मी के बढ़ जाने से इनमें आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। यह आग आवश्यक नहीं कि आदमी की गलती से ही लगे। टहनी टूट कर गिरी, घर्षण हुआ, चिंगारी निकली और आग लगी। पानी ने लेंस का काम किया, सूर्य की किरणें जमा हो कर घास या झड़ी पर पड़ी और आग लगी। क्यों, ऐसे सूखेपन से तो आद्रता ही भली। परेशानी तो होती है लेकिन जान-माल की हानि तो नहीं। दूर के ढोल सुहावने। 

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – संत मैरिस कैथेड्रल


ऑस्ट्रेलिया – संत मैरिस कैथेड्रल

संत मैरिज कैथेड्रल, अलग अलग कोनों से 
प्रसिद्ध हाइड पार्क से सटा हुआ, सिडनी शहर के मध्य में है यह कैथेड्रल। अपनी बनावट, विशालता और अद्भुत स्टेन ग्लास की खिड़कियों के लिए ऑस्ट्रेलिया ही नहीं पूरे विश्व में सुपरिचित है। हजारों पर्यटक रोज इसे देखने आते हैं। कैथेड्रल की असली प्राचीन इमारत 1865 में पूरी तरह जल कर समाप्त हो चुकी थी। उसके बाद आहिस्ता आहिस्ता इस नई इमारत का निर्माण शुरू हुआ। इसे पूरी तरह बन कर तैयार होने में लगभग 100 वर्ष लग गए। कई चरणों में बना यह कैथेड्रल आखिर जून 2000 में बन कर तैयार हुआ और 2018 में इसके 150 वर्ष पूरे हुए। काँचों पर खूबसूरत कारीगरी और चित्र का कार्य बर्मिंघम में किया गया था।  
प्रवेश द्वार से एक झांकी 

















अर्मेनियन समुदाय के आभार का प्रतीक चिन्ह कैथेड्रल परिसर में 
कैथेड्रल परिसर में जॉन पॉल की प्रतिमा

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – न्यू साउथ वेल्स का चित्र कला संग्रहालय (१)


ऑस्ट्रेलिया – न्यू साउथ वेल्स का चित्र कला संग्रहालय (१)

बहुतों को संग्रहालय के नाम से ही चिढ़ है। वे वहाँ जाते ही नहीं या जाना पड़ जाय तो प्रवेश द्वार से पूरी गति से चलते हुए निकास द्वार से निकल जाते हैं। अगर आप इनमें हैं तो यह आपके लिए नहीं है। अन्यथा इसे देखने के लिए एक दिन का समय कम है। इस संग्रहालय में प्रवेश नि:शुक्ल है। वैसे एक विशेष दीर्घा भी है जिसमें विदेशी प्रसिद्ध चित्रकारों की प्रदर्शनी चलती रहती है। इस दीर्घ में जाने का प्रवेश शुक्ल लगता है। इस संग्रहालय का निर्माण 1871 में  हुआ था और विश्वस्तरीय संग्रह के कारण इसकी गणना कुछेक जानेमाने संग्रहालयों में की जाती है। बजाय इसके बारे  में पढ़ने के इसकी कुछेक तस्वीरें ही देखिये :


द्वार पर घोड़े पाए सवार प्रहरी और विशाल फूलों का गुलदस्ता


स्वागत कक्ष की दीवारों पर लगे चित्र



विशालकाय चित्र

चित्रों का एक नमूना


भारतीय दीर्घा के प्रवेश द्वार पर 


दीर्घा में प्रदर्शित भारतीय मूर्ति काला के नमूने

ऑस्ट्रेलिया – न्यू साउथ वेल्स का चित्र कला संग्रहालय (२)

ऑस्ट्रेलिया – न्यू साउथ वेल्स का चित्र कला संग्रहालय (२)


संग्रहालय के कुछ और चित्र

कुछ और चित्रों की बानगी

समकालीन चित्र

मूल आदिवासी चित्र का नमूना

मूर्ति कला 


आधुनिक चित्रकला की एक और बानगी

मूल आदिवासी चित्र कला

खिड़की से झाँकता शहर

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

सूतांजली दिसंबर 2019


सूतांजली दिसंबर २०१९ में ४ लेख हैं।
१.  जीवन मंत्र
बहुत ही सीधा और सरल है। सब ऐसा करें तो जगत दुनिया जाए। कठिन इस ‘सब’ में ही है। वापस वही ‘पहले आप के बदले पहले मैं’ कर सकें तो।    
२. भ्रष्टाचार से मुक्ति
नियम अनेक बनाए जा सकते हैं, बनाने भी होंगे। लेकिन किवंदन्ती है कि ‘ताले साहूकारों के लिए ही होते हैं चोरों के लिए नहीं’। भ्रष्टाचार के  लिए दंड का प्रावधान तो करना ही होगा। लेकिन साथ ही उसके विरुद्ध हृदय परिवर्तन भी करना होगा। ऐसा न हो, तो केवल नियम बनाने से समस्या का समाधान नहीं निकलेगा।
३. काली चमड़ी गोरा नकाब
नारायण मूर्ति का आत्म कथ्य। सुशिक्षित और सक्षम व्यक्तियों की दोहरी मानसिकता, दोहरा मापदंड  ही हमारे देश की  प्रगति में सबसे बड़ी बाधक है।
४.बात ज्यादा काम कम
हम बातें लंबी चौड़ी कर लेते हैं। यो यूं कहें कि केवल बातें ही करते हैं। उसे करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई उद्यम। यही मानते हैं कि करने की ज़िम्मेदारी किसी और की है। क्या यह सोच बदल सकते हैं?
अपने विचार एवं टिप्पणी हम तक पहुंचाएं तो हमें अच्छा लगेगा।

 पढ़ें http://sootanjali.blogspot.com पर

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – आइए सिडनी घूमें, कम खर्च में


ऑस्ट्रेलिया – आइए सिडनी घूमें, कम खर्च में

ऑस्ट्रेलिया की गिनती विश्व के मंहगें देशों में होती है। उस पर भी सिडनी, यहाँ का व्यापारिक केंद्र, तो और भी महंगा है। यहाँ के दार्शनिक स्थलों में प्रवेश की टिकटें मंहगी हैं। कई दर्शनीय स्थलों की टिकिट एक साथ लेने से अच्छी छूट मिलती है लेकिन फिर भी जेब पर भारी पड़ती है। अनेक सुविधाओं और छूटों के बावजूद परिवहन भी सस्ता नहीं पड़ता। तब कैसे समय व्यतीत करें, कैसे घूमें? सबसे पहली बात, दूर जाने की जगहें रविवार के लिए बचा कर रखें। रविवार को पूरे दिन का सफर ओपल कार्ड से एयूडी 2.80 में हो जाता है – बस, ट्रेन और फेरी सब मिला कर। दूसरी बात, रविवार छोड़ कर अन्य दिन सुबह 7 से 9 और शाम 4 से 6.30 के मध्य किसी भी परिवहन में यात्रा प्रारम्भ करने से बचें। यह व्यस्त समय है, इस समय भाड़ा 30% ज्यादा हो जाता है।  बहुत सी जगहें हैं जहां बिना किसी प्रवेश शुल्क के जाया जा सकता है – यानि बिलकुल मुफ्त। ये कहने के लिए मुफ्त हैं लेकिन अच्छी हैं, जाने लायक हैं। उनमें से केवल 10 जगहे ये हैं:


1। न्यू साउथ वेल्स चित्र संग्रहालय – नाम पर न जाएँ केवल चित्र नहीं, अनेक कलात्मक वस्तुओं का बेहतरीन विश्वस्तरीय संग्रह है। इसकी इमारत अपने आप में कला  का एक उत्कृष्ट नमूना है। विश्व की अनेक वस्तुओं की प्रदर्शनी चलती रहती हैं और प्रदर्शित करने के लिए नियमित रूप से देश विदेश से आती रहती हैं।  देश के अन्य संग्रहालयों से इनका संपर्क बना रहता है और कलात्मक वस्तुएँ आपस में आदान-प्रदान करते रहते हैं। इतना ही नहीं अपने खुद के संग्रह को भी नियमित रूप से बदलते रहते हैं।

2। सिडनी ओबजरवेटरी यानि वेधशाला या जंतर-मंत्र1850 में बनी इस वेधशाला में रखे यंत्रों से सौर मण्डल के बारे में अच्छी जानकारी तो मिलती ही है उनकी गति भी समझ आती है। ये यंत्र प्राचीन हैं और इसका निर्माण सही समय की गणना के लिए किया गया था। कुछ डॉलर खर्च कर यहाँ की दूरबीन से दिन में सूर्य और रात में तारे देखे जा सकते हैं।  सीमित स्थान होने के कारण दूरबीन से देखने के लिए अग्रिम आरक्षण करवाना उचित है। इस दूरबीन का निर्माण 1874 हुआ था।
100 वर्ष पुराना पेड़
3। रॉयल बोटानिक गार्डेन – 1816 में बना 200 वर्ष पुराना, यह बगीचा विस्तृत, हरा-भरा, रंगीन और बेहद सुंदर है। यहाँ की रेशमी घास पर चलना और उस पर लेटना, पेड़ की शीतल छाँह में गप-शाप करते हुए शीतल हवा का आनंद नहीं लिया तो फिर क्या सिडनी आए? इसके अलावा एक 100 वर्षों से ज्यादा पुराना विशालकाय पेड़ तथा सागर किनारे लंबी सैर जरूर से करें। एक छोर पर सिडनी ओपेरा हाउस और दूसरी छोर पर श्रीमती मक्कुयरी की कुर्सी है। इस जगह से ओपेरा हाउस और हार्बर ब्रिज को एक साथ देख सकते हैं।


4। मैनली समुद्र तट – यहाँ जाने के लिए फेरी से जाना ही ठीक है। समुद्र तट के साथ साथ फेरी का भरपूर आनंद लिया जा सकता है। जिन्हे समुद्र पसंद है, उन्हे यह जगह जरूर पसंद आएगी।


5। कोक्काटू द्वीप -  2010 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल (world heritage site) घोषित किया है। पैरामाटा और लेन कोव नदी के मुहाने पर यह छोटा सा द्वीप है। जाहीर है द्वीप होने के कारण यहाँ जाने के एकमात्र साधन फेरी है। 1839 से 1869, तीस वर्षों तक यह द्वीप प्रमुखत: कैदियों का जेल 
रहा। 1857 से 1991 तक यह द्वीप ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े शिपयार्डों में से एक था। अब यहाँ अनेक सरकारी और निजी छोटे-बड़े कार्यक्रम, त्योहार, समारोह आदि का आयोजन होता रहता है। यहाँ रात में ठहरने के लिए कैंप के अलावा आलीशान बंगले भी बने हुआ हैं। 



6। सिडनी से पैरामाटा बोट की यात्रा – वैसे तो और कई जगहों पर, कोक्काटू द्वीप-मैनली समुद्र तट आदि, जाने से बोट की यात्रा हो गई है। लेकिन ये बोट यात्रायें समुद्री यात्रा थीं, जबकि पैरमाटा की बोट यात्रा नदी की यात्रा है। जाते समय दोनों किनारों का नजारा देखना अपने आप में एक अलग अनुभव है।
7। ओपेरा हाउस और सिडनी हार्बर ब्रिज – ओपेरा हाउस के परिसर में चारों तरफ घूमना और हार्बर ब्रिज से पैदल समुद्र पार करना सुकून तो देता ही है, आँखें भी तृप्त होती हैं। ये दोनों ही ऑस्ट्रेलिया के प्रतीक पर्यटन स्थल हैं।

कस्टम हाउस, क्वीन विक्टोरिया इमारत की घड़ी, संत मैरी कैथेड्रल 

8। कस्टम हाउस, विक्टोरिया भवन और संत मैरी काथेड्रल – ये तीनों ही इमारतें देखने लायक हैं। बाहर से नहीं भीतर से। 145 वर्षों से लगातार कार्यरत सिडनी का कस्टम हाउस ऑस्ट्रेलिया का सबसे पुराना कस्टम हाउस है। इस में बने शीशे के फर्श पर से पैरों के नीचे शहर का प्रारूप देखते ही बनता है।  विक्टोरिया भवन का निर्माण 1893 से 1898 के मध्य हुआ। भवन में लगी हैं दो अद्भुत और विचित्र घड़ियाँ, इनकी घंटी ही नहीं बल्कि इनकी चाल भी देखने लायक हैं। 1928 में बनी संत मैरी काथेड्रल की भव्यता भी दर्शनीय है।


9। पुस्तकालय – वैसे तो शहर और हर निगम का अपना अपना पुस्तकालय है लेकिन न्यू साउथ वेल्स 

पुस्तकालय सबसे बड़ा है। खास बात यह है कि सब पुस्तकालयों में बैठने और पुस्तक-पत्रिका पढ़ने के लिए किसी प्रकार की सदस्यता की आवश्यकता नहीं है। बेधड़क घुसें, मन पसंद की पुस्तक या पत्रिका उठाएँ और किसी भी कुर्सी या सोफ़े पर जम जाएँ। सारे दिन बैठे रहें कोई टोकने नहीं आयेगा। सबसे बड़ी बात यह कि अँग्रेजी के अलावा विश्व की अनेक भाषाओं की जिनमें हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी पुस्तकें रहती हैं। हाँ, अगर पुस्तक ले जाना चाहते हैं तब सदस्यता आवश्यक है – लेकिन बिना किसी सदस्यता शुल्क के।

डार्लिंग हार्बर की शाम 

डार्लिंग हार्बर की सुबह 
10। डार्लिंग हार्बर – अगर सिडनी आकर यहाँ का चक्कर नहीं लगाया तो सिडनी आना ही बेकार हो गया। समय के साथ साथ इसका रंग और रूप भी बदलता रहता है। यहाँ बैठे बैठे सारा दिन ही नहीं शाम भी बिता सकते हैं, बोर नहीं होंगे। सुबह से लेकर रात तक, बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सब के लिए कुछ न कुछ तो है ही यहाँ।

ये तो मैंने 10 ही जगहें बताई हैं। लेकिन इनके अलावा और भी अनेक जगह जाया जा सकता है। यथा मैरिटाइम संग्रहालय, समकालीन चित्र तथा कला संग्रहालय, रॉक्स संग्रहालय, हायड पार्क, राष्ट्रीय उद्यान, केंद्रीय उद्यान। मुफ्त की पैदल यात्रा तो सिडनी भ्रमण का एक आवश्यक अंग है। इसकी विस्तृर चर्चा मैंने अपने 18 अक्तूबर 2019 के पोस्ट में की है। इनके अलावा शॉपिंग मॉल तथा खाने-पीने की तो कोई चर्चा की ही नहीं। इनमें जाने का तो कोई खर्च नहीं है जब तक कुछ खरीददारी नहीं करते, न कुछ खाते हैं, न पीते हैं। लेकिन फिर जाना क्यों? मॉल में तो फिर भी विंडो शॉपिंग की जा सकती है लेकिन रेस्तरां में? आपकी श्रद्धा पर निर्भर करता है। जितना गुड डालो उतना मीठा।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – सिडनी में परिवहन की खास बातें


ऑस्ट्रेलिया – सिडनी में परिवहन की खास बातें

विश्व को तीन प्रकार के देशों में बांटा गया है – विकसित, विकासशील और अल्पविकसित या पिछड़े देश। हर वर्ष विभिन्न आंकड़ों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ एक तालिका तैयार करता है जिस के आधार पर देशों को इन वर्गों में बांटते हैं। इस तालिका के आधार पर ऑस्ट्रेलिया विश्व के विकसित देशों में तीसरे स्थान पर है। हर देश की अपनी खासियत होती है। सबका देखने का नजरिया भी अपना अपना होता है। मैं आज बताना चाहता हूँ, एक आम आदमी की नजर से, ऑस्ट्रेलिया या शायद सिडनी के परिवहन व्यवस्था की 10 खास बातें। ये क्रम बद्ध नहीं है, यानि यह नहीं कहा जा सकता कि ये प्रथम दस खास बातें हैं, या इनसे ज्यादा खास बातें और हैं ही नहीं। जैसे जैसे मैंने देखा, समझा, अनुभव किया और स्मरण रहा बस उसी प्रकार लिख रहा हूँ। आज जिन बातों की मैं चर्चा कर रहा हूँ  वे केवल ऑस्ट्रेलिया या सिडनी की ही नहीं कमोबेश विश्व के किसी भी विकसित देश या शहर की हो सकती है। अत: अगर किसी भी विकसित देश में भ्रमण किया हो तो इनसे थोड़ा बहुत परिचय हुआ होगा। तो प्रारम्भ करता हूँ, सिडनी के परिवहन व्यवस्था की 10 खास बातें :

1। परिवहन व्यवस्था यानि सरकारी बस, ट्रेन और स्टीमर आधुनिक तकनीक से लैस हैं। “ओपल” कार्ड तीनों में मान्य हैं अलग अलग लेने की आवश्यकता नहीं है। ये राज्य सरकार द्वारा संचालित हैं। एक ही कार्ड से इन तीनों में सफर कर सकते हैं। हर बस में, स्टेशन पर घाट पर इस कार्ड को स्कैन करने की सुविधा है जिसमें चढ़ते और उतरते समय स्कैन करना आवश्यक होता है। अब ओपल के अलावा अमेरीकन एक्सप्रेस, मास्टर और वीसा कार्ड में भी यह सुविधा दी गई है।
एक खाली ट्रेन की सीटें, स्टेशन पर लगे डिजिटल बोर्ड जो हर क्षण ट्रेन की खबर देते रहते हैं , ट्रेन में ऊपर जाने और नीचे उतरने की सीढ़ियाँ, ट्रेन के अंदर  सीटें 
2। बहुत से रूट ऐसे हैं जहां भाड़े का भुगतान इसी या अन्य क्रेडिट कार्ड के द्वारा ही किया जा सकता है। नकद भुगतान की कोई व्यवस्था नहीं है।
3। ट्रेन ही नहीं बस और फेरी की भी समय सारिणी है। हर बस स्टॉप पर वहाँ आने वाले बस की जानकारी और समय सारिणी लिखी रहती है और कमोबेश वे सही समय से आती हैं। यही नहीं, अपने फोन पर बस की वर्तमान स्थिति देख सकते हैं जिससे पता लगता रहता है कि बस अपने समय से चल रही है या नहीं और अभी कहाँ पर है।
3। “ओपल कार्ड कई प्रकार के हैं यथा वयस्क, अल्पवयस्क, छात्र, वरिष्ठ, बेरोजगार आदि। इनके अनुसार भाड़ा भी अलग अलग है।
4। समय और दिन के अनुसार भाड़े अलग अलग हो जाते हैं। यथा सप्ताह के 5 दिन, सोम से शुक्र सुबह 7 से 9 और शाम 4 से 6.30 व्यस्त समय है। इस समय सफर करने से भाड़ा 30% ज्यादा लगता है। शनि और रवि तथा छुट्टी के दिन सामान्य भाड़ा लगता है। सप्ताह में 8 सफर कर लेने पर भाड़े में 50% की छूट मिल जाती है। रविवार को अधिकतम कुल भाड़ा AUD 2.80 ही लगना है चाहे जितना बार और जितनी दूर का सफर करें। कई अवस्थाओं में रविवार को सब सफर में 100% की छूट उपलब्ध है। एक रविवार हमने बस, ट्रेन, ट्राम और स्टीमर मिला कर लगभग 100 किमी का सफर किया। भाड़ा लगा 0.00।
5। ये सब परिवहन व्यवस्था एयरकंडिशन हैं और कुछ रूट में कुछ समय के अतिरिक्त हर समय बैठने की जगह मिलनी निश्चित है।  सभी ट्रेनें दो मंजली हैं।
6। ट्रेन के स्टेशन को शहर के अंदरूनी भागों से जोड़ने की व्यवस्था मेट्रो ट्रेन से है। इसे और विकसित किया जा रहा है। मेट्रो के अलावा बसों से भी जुड़ाव लगातार मिलते रहते हैं।
7। हर मेट्रो स्टेशन पर और शहर के बाहर के ट्रेन के स्टेशन पर बिना किसी भाड़े के गाड़ी खड़ी करने की व्यवस्था है। कहीं कहीं तो इसके लिए बहुमंजली इमारत भी बनी हुई हैं।
8। अगर ट्रेन / बस / फेरी की दूसरी यात्रा पहली यात्रा के समाप्त होने के एक घंटा पहले प्रारम्भ हो जाती है तो उस दूसरी यात्रा को पहली यात्रा का ही हिस्सा समझा जाता है और भाड़ा भी उसी प्रकार लिया जाता है। यानि मनाइए ऑफिस से ट्रेन में आये और स्टेशन से घर तक बस में जाने के पहले बाजार से पावरोटी या कुछ और लेना है। उसे खरीद कर एक घंटे के अंदर ही बस ले लेते हैं तो यह यात्रा दूसरी नहीं बल्कि पहली का ही भाग है। इस कारण भाड़ा कम हो जाता है।  
9। हर स्टेशन पर स्वचालित सीढ़ियाँ एवं लिफ्ट दोनों या कम से कम तो निश्चित रूप से लगी होगी।
10। हर स्टेशन पर अपने ओपल कार्ड को चार्ज करने के लिए मशीनें लगीं हैं जहां खुद कार्ड चार्ज किया जा सकता है। अन्यथा काउंटर पर भी करवा सकते हैं।

 तो आइए सिडनी और लुफ्त लीजिये शहर का यहाँ की अत्याधुनिक परिवहन व्यवस्था से।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – वेस्टमीड से मार्सडेनपार्क

ऑस्ट्रेलिया – वेस्टमीड से मार्सडेनपार्क
बंगाल झारखंड की सीमा पर एक छोटा सा गाँव है - दुबड़ा। यही है वह जगह, जहां हमारे पूर्वज राजस्थान छोड़ कर आ बसे। मेरा यहाँ रहना कभी नहीं हुआ। लेकिन बचपन में लंबे समय के लिए हम यहाँ आते थे। बचपन के वे दिन, जो हमने यहाँ बिताए, मानस पटल पर खुद गए हैं। वे सुहावने दिन बार बार याद आते हैं। सुबह उठना और बगीचे में सैर के लिए जाना, वहीं जंगल में शौच से निपटना, दतुवन करना, कुएं पर बैठ कर स्नान करना।  झूला झूलना, धमा चौकड़ी मचाना, मंदिर जाना, पूजा करना, आरती के दर्शन करना। पिकनिक पर जाना। यहीं हमने जाना कि पिकनिक में बाजार का बना ही नहीं बल्कि घर का पका सामान भी लेकर नहीं जाते। केवल कच्चे सामान ले जाते हैं और वहीं पकाते हैं। बड़े बुजुर्गों के साथ घर के बाहर निवार या नारियल रस्सी की बनी खाट या फिर लकड़ी के तख्त पर बैठ कर हवा खाना, मालिश करवाना या धूप सेंकना।  तास-चौपड़ खेलना या फिर देखना। सूर्योदय, सूर्यास्त और रात को तारों से भरा आसमान देखना तो साधारण सी बात थी, क्योंकि खुली छत पर जो सोते थे। नल नहीं थी, लोटा और बाल्टी का प्रयोग होता था। मिट्टी की भट्टी में लकड़ी का ईंधन, धान की खमार, कूटने की धौंकनी जिसे पैर से ठोंकना पड़ता था।  पिछवाड़े में गौशाला। सुबह शाम बगीचे जाते समय मवेशियों के गले में बजती घंटी की टुनटुन। कच्ची सड़क पर टनटन कर चलती बैल गाड़ी या फट फट की आवाज करती मोटर साइकल। कभी कभार किसी गाड़ी के दर्शन हो जाते थे।  त्यौहार पर लगता था कि पूरा गाँव ही अपना परिवार है। सब मिलकर एक साथ मनाते थे। रोज़मर्रा की हर वस्तु आसपास मिल जाती थी। नहीं है, तो पड़ोसी से ले-लीजिये या फिर वो ला देगा। पहला कस्बा रघुनाथपुर लगभग 12 किमी और शहर पुरुलिया 40 किमी की दूरी पर। दिन में कई बार सरकारी बस की सवारी मिल जाती थी, बस क्या खटारा।  गाँव में कामचलाऊ डॉक्टर थे, दवाखाना भी। लेकिन अस्पताल नहीं था। छोटा सा विद्यालय भी था और एक धर्मशाला भी, शादी-व्याह या अन्य किसी प्रकार के अनुष्ठान के लिए। पैसे का बोलबाला नहीं था। आपसी प्रेम, संबंध और सौहार्द के सीमेंट से जुड़े थे हम
घर के दरवाजे से सूर्यास्त 

सिडनी से वेस्टमीड बड़े शहर से छोटे शहर में और फिर वेस्टमीड से मार्सडेन पार्क जाना ऐसा ही है जैसे छोटे शहर से गाँव में आ गए। वेस्टमीड से 30 किमी और सिडनी से लगभग 50-55 किमी दूर। ऐसी शांति कि अपनी सांस लेने की आवाज तक सुन पड़े। छोटे छोटे एक या दो-मंज़िले बंगलानुमा मकान। हर मकान के साथ एक छोटा सा बगीचा। साफ शुभ्र आकाश। घर के दरवाजे से सूर्योदय और सूर्यास्त के दर्शन। सूर्योदय पूरब से, आसमान लाल पश्चिम का। घर से बाहर निकलो और सैर शुरू, वैसे कई छोटे बड़े मैदान भी हैं। बड़ों के खेलने, दौड़ने और टहलने के लिए। बच्चों के खेल के लिए भी उनके लायक उपकरणों से भरा पूरा। बड़ों का मैदान भले ही खाली नजर आ जाए, बच्चे तो भरपूर फायदा उठाते हैं। दूर जंगल के पेड़ और उसके पार पर्वत शृंखला घर बैठे दिखती है। धूल कहीं नहीं। कहीं कोई जानवर नहीं दिखाई देता सवाय किसी के पालतू कुत्ते 

सैंत ल्यूक स्कूल
या आसमान में कांव कांव करते कौवे के। कभी कभार दूसरे पंक्षी और बगल के जंगल से भटक कर आए जानवर भी दिख जाते हैं। कहीं कोई कच्ची सड़क नहीं। सब पक्की साफ सुथरी चौड़ी सड़क और उस पर तेजी से दौड़ती गाडियाँ, ट्रक, डंपर और ट्रेलर। नये निर्माण पूरे ज़ोर शोर से जारी है। इतने लोग रहते हैं लेकिन फिर भी सब अलग अलग। इस पूरे क्षेत्र में कहीं भी किसी भी प्रकार की कोई दुकान नहीं। न चाय-कॉफी, न साग-सब्जी, न मिर्च-मसाले। इसके लिए कम से कम 7-8 किमी की दौड़ लगानी पड़ेगी। पास पड़ोस से भी लेने का रिवाज नहीं है। अपने सामानों पर नजर रखिए और समाप्त होने के पहले ही ले आइए। अपने रेफ्रीजरेटर का पूरा इस्तेमाल कीजिये और हर समय भर कर रखिए। बिजली जाने का कोई भय नहीं। रसोई में गैस की सीधी सप्लाइ होने के कारण सिलिंडर का कोई झंझट ही नहीं। न कोई डॉक्टर, न दवाखाना। अस्पताल का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। हाँ, एक स्कूल है। पूरे क्षेत्र में एक सरकरी बस की व्यवस्था है। बसें नियमत समय सारिणी से चलती ट्रेन की तरह। उनके समय के अनुसार ही कार्यक्रम बनाना पड़ता है या फिर अपनी गाड़ी के भरोसे। सुरक्षा के लिए हर घर में अपने अपने कैमरे- साइरन लगे हैं, वैसे कुछ भी दुर्घटना होने की उम्मीद कम ही रहती है। पड़ोसी से इतनी तो उम्मीद रख सकते हैं कि किसी भी प्रकार का साइरन बजा तो पुलिस में खबर कर देगा और शायद पुलिस आ भी जाएगी।  अभी अभी बसा है यह गाँव, या यह कहना बेहतर होगा कि अभी भी बस ही रहा है। लोग आ रहे हैं। नए निर्माण हो रहे हैं। शायद कुछ समय बाद दैनिक जीवन की सुविधाएं आस-पास मिल जाएँ। एक उन्नत देश का एक आधुनिक गाँव। सुख सुविधाओं से भरा पूरा, जहां आदमी तो रहते हैं इंसान का पता नहीं
मार्सडेन पार्क का एक दृश्य

हर समय मन में बना रहता है क्या पुराने दिन वापस आएंगे? क्या कभी वापस अपने गाँव में जा कर कुछ समय बिता सकेंगे?  अपना गाँव भी अब अपना जैसा रहा नहीं, विदेश का गाँव अपना जैसा हो नहीं सकता। दरअसल दोनों में अपनी खूबियाँ हैं, अपनी कमियाँ हैं और ये व्यक्ति और समय सापेक्षिक हैं।  सब खूबियाँ एक साथ हो नहीं सकतीं, सब कमियाँ भी एक साथ नहीं हो सकती। यह मनुष्य को तय करना होता है कि उसे क्या चाहिए और उसका क्या मुल्य चुकाने के लिए तैयार है। कौनसी खूबियों और कमियों के बदले कौन सी कमी और खूबी का विनिमय करना है। यहाँ भुगतान पैसों में नहीं, बल्कि, सुख त्याग कर या दुख अंगीकार कर के ही किया जाता है। यही जीवन का मूल मंत्र है। जो इतनी से बात समझ लिया वही सुखी है। एक के रहते हुए दूसरे के लिए दुखी होने वाला, तो वही बात हुई कि पानी में रहते हुए पानी को तरसे। लेकिन कमल पानी में रहते हुए भी पानी से असंपृक्त। जाहे विधि रखे राम, ताही विधि रहिए। 









मार्सडेन पार्क में खेलते बच्चे और बड़े


सूर्योदय के समय पश्चिम क्षैतिज पर लालिमा